सन्नाटे में शनाख़्त - भाग 2

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भाग -2 कितनी बुरी तरह चोटिल हो गई थी, सवेरा होते-होते जब मेरी जान पर बन आई तो शैतान को लगा कि कहीं मर-मरा गई तो जेल जाना पड़ेगा, इसलिए घरवालों से कहा कि यह ग़ुस्लख़ाने में फिसल कर गिर गई, वहाँ रखा कोई सामान इसको ज़ख़्मी कर गया।  और जाहिलों का पूरा कुनबा सब-कुछ जानते हुए भी मुझ पर ही टूट पड़ा। एक औरत, ऊपर से सास, जो असल में दोनों ही के नाम पर कलंक थी, अपने साहबज़ादे के कुकर्म, वहशीपन को कुछ कहने की बजाय बेग़ैरतों की तरह मेरी ही जाँच कर डाली। मुझको ही शर्मों-हया की