सूर्यास्त से सूर्योदय तक हिन्दी नाटक

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द्रश्य – सूर्यास्त का समय। समुद्र का तट । तट पर जन भीड़। भीड़ के कोलाहल द्वारा भीड़ का अनुभव कराना । [यह द्रश्य पीछे परदे पर दिखा सकते हैं] [मंच पर एक कोने में एक समुद्री खड़क की आकृति, नीचे श्वेत रेत, पार्श्व में भीड़ का कोलाहल, समुद्री हवा की ध्वनि तथा समुद्र की तरंगों का स्वर] [पुरुष- निवृत्त हो चुका- मंच की रेत पर प्रवेश करता है, समुद्र को देखते देखते। कुछ पग आस पास देखता देखता चलता रहता है।] [एक कोने में ठहर जाता है, समुद्र की तरफ दृष्टि रखकर बोलत है]पु – कितनी भीड़ है! कितना