सोने के कंगन - भाग - ३

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धीरे-धीरे वक़्त गुजरता रहा लेकिन कंगन वापस लाने का इंतज़ाम ना हो पाया। आर्थिक परिस्थिति के कारण उस कंगन के जोड़े को उनके परिवार ने सच में भुला दिया और उन्हें साहूकार को बेच दिया। अब तक ब्याज इतना हो चुका था कि कुछ पैसे भी इन लोगों के हाथ नहीं लगे। कुशल ने कहा, “माँ मुझे माफ़ कर देना मैं आपके कंगन ना छुड़ा पाया।” “कुशल यह क्या कह रहा है तू? आगे से ऐसे शब्द कभी मुँह से नहीं निकालना। हम सब साथ-साथ हैं, इतने प्यार से रहते हैं, वही तो हमारी असली पूंजी है। दौलत का क्या