सफरनामा (दिलो की दास्तान)

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1.बिखर कर भी संभल जानामज़ाक थोड़े हैयादों की किताब में फट चुके पन्नों को संभाल कर रखनामज़ाक थोड़े हैआंखों में आंसुओं को पाल कर रखना मज़ाक थोड़े हैदिल में बसे इन्सान कोदिल से निकाल कर रखनामज़ाक थोड़े है2.कभी वो दिन कभी रात याद किया करती थी तस्वीरों से ख्वाब सजाया करती थी मझधार में जब होती पुकारा करती जीवन के श्रृंगार हाथो से सजाया करती ...उनकी यादों का सफर हमसाया रहाआज भी यादों में भींग जाया करतेलौट आओ फिर ख्वाबों को सजाया जाएजैसे पहले तुम बेखुभि सजाया करती थी !3.क्यूं लिखती हो यूं तुम रेत पर नाम मेरा...?इक हवा के