अनहोनी

  • 3.4k
  • 1.3k

लघुकथा अनहोनी कभी - कभी कोई अनहोनी ऐसे भी हो जाती है कि उस पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। दशकों बाद दोनों अपत्याशित रूप से एक दूसरे के सामने थे ।जब भी अवसर मिलता वो अपने इस पुराने शहर में आने से नहीं चूकता था । शहर वही , पार्क वही , बैंच वही , समय भी वही , आकर वहीँ बैठ भी जाता । एक के बाल सफेद और आंखों पर चश्मा था , दूसरे के सर पर बाल नहीं थे । दोनों कुछ देर तक पहले आश्चर्यभरी चोर नजरों से और बाद में टकटकी लगाकर कौतूहल