हसरत भरी निगाहें

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वाजिद हुसैन की कहानी वतन परस्ती के जज़्बे के कारण उसके परिवार ने बहुत दंश झेले थे। स्वतंत्रा संग्राम में उसके पिता तथा भाई को जेल में रहना पड़ा था और वहां उन्हें मारा-पीटा भी गया था। रूबी ख़ां को ख़ुद़ जब वह काॅलेज में बी.ए. में पढ़ रही थी, सात दिन के लिए जेल की हवा खानी पड़ी थी। वह कभी किसी आंदोलनकारी से नहीं मिली थी, सिवाय उसके, जिसका नाम रवि शंकर था। परंतु क्या इसे मुलाक़ात कहा जा सकता है। वह एक अद्भुत घटना थी। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का ज़माना था। कॉलेज के कुछ