अनिता

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अनिता - रंजन कुमार /रमेश देसाई मेकर भवन के सामने की गली अभी तो आधी ही पार की थी उसी वक़्त बोस की कडूई તે बात कानो में गूंजने लगी उस सेशेखर के दिल से आह निकल आई. उस को एक गीत याद आ गया.दर्द हमारा कोई न जानेअपनी गरज के सभी हैं दिवाने गीत आगे बढे उस के पहले की किसी दर्दनाक आक्रोश शेखर के कानो को छू गया." कुछ खिलाओ भूखे को. दो दिनों से कुछ भी नहीं खाया.एक बेसहारा नारी का विलाप उस को व्यथित कर गया.. सोच की कड़ी टूट गई. सिनारियो देखकर उसे झटका लग