ये तुम्हारी मेरी बातें - 3

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"सौ मर्तबा कहा होगा तुमसे कि कपड़े फैलाते वक्त कपड़ों की क्लिप का भी इस्तेमाल किया करो, लेकिन छत पर नज़रें और ध्यान कपड़ों पर कहां रह जाता है, है ना वकील बाबू!" "सुनो, तुम ना गाली दे दिया करो, ये वकील बाबू ना बुलाया करो। ज़ुबान से डंडा मार देती हो कसम से! और रही बात हमारा ध्यान भटकने की तो, वो दस साल पहले भटका था, तबसे भटका ही हुआ है।" " बस, एक यही काम आता है तुम्हें, बात क्या हो रही होती है, उसे कहां लेके चले जाते हो। मैं तुम्हारी मुवक्किल नहीं हूं, जो बातों