कार्यालयीन आध्यात्म (महेश अनघ)

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सेवानिवृत आदमी के पास और कुछ हो, न हो, लेकिन दो महत्वपूर्ण चीजें जरूर होती हैं। एक- उम्र के अनुसार 'आध्यात्मिक चिन्तन की और स्वाभाविक झुकाव, औरदो- सरकारी कार्यालयों के काम काज का राई रत्ती अनुभव। वस्तुतः और कुछ उनके पास होता भी नहीं । शरीर, जो है, सो घिस घिसा कर लचर हो चुका होता है। फन्ड, ग्रेच्युटी आदि का जो पैसा मिला था वह तत्काल बहू-बेटे के हित में विनिवेश हो चुका होता है, और सामाजिक प्रतिष्ठा जिसे कहते हैं, वह तो नौकरी के चक्कर में अर्जित ही नहीं हो पाती है। मकान, यदि बनवा चुके होते हैं,