बात बहुत पुरानी हैं,मैं वृंदावन में बाँके बिहारी के दर्शन करने के लिये अकेला ही जा रहा था,सामने से आ रही एक बहुत सुंदर सी गाड़ी जिसको एक महिला चला रही थी,अचानक मेरे पास आ कर रुकी, शीशा नीचे करके बोली आप पीयूष हैं ना, मैं बोला,हाँ मैं पीयूष हूँ.उसने गाड़ी किनारे लगाकर मेरे पास आई और बोली पहचाना मुझे,मैं बोला नहीं मैं पहचान नहीं पाया, उसने कुछ समय दिया मुझे पहचानने के लिये,मैं फिर भी नहीं पहचान पाया,वो बोली चल मैं तेरे को कुछ हिंट देती हूँ, हम साथ-साथ पढ़े थे, उसने मुझे दो तीन मित्रों के नाम बतायें,मैं