सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 3

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सेवा मार्ग का पथिकसांसारिक उलझनों और व्यवसाय संबंधी कुटिलताओं के कारण तुकाराम जी का जीवन दुःखमय हो गया था और इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप उनके मन में वैराग्य की भावना सुदृढ़ हो गई। यों तो संसार में अनगिनती लोगों का जीवन अभावपूर्ण और दुःखी होता है, असह्य कष्ट आ पड़ने पर उनको वैराग्य भी हो जाता है, पर यह वैराग्य क्षणिक होता है। ऐसे वैराग्य को ज्ञानियों ने 'श्मशान-वैराग्य' कहा है। ऐसा वैराग्य श्मशान भूमि से बाहर आते ही समाप्त हो जाता है, क्योंकि वह ऊपरी है। चार आँसू गिरते ही ठंडा पड़ जाता है। तुकाराम जी दुनिया की तिकड़मों से