मुझे ज़िंदगी के साथ अड़जस्टमेंट नहीं करनी...! पर मुझे पता भी नहीं कि मैं क्या चाहती हूँ खुद से लोग जीते हैं अपने सपनों को पीछे छोड़कर, अपने लोगों के लिए वही रोज़ की ज़िंदगी जीते हैं ये सोचकर कि उनके पास कोई और ऑप्शन नहीं है वही रोज़ का बस और ट्रेन का ट्रैवल, बॉस की कटकट, सेल्फिश लोग, ज़िम्मेदारियों का बोझ लेकर एक रोबोट वाली ज़िंदगी जीते हैं मुझे पता है उसमें उनकी भी कोई गलती नहीं होती क्योंकि ये सारी चीजें हर किसी को फेस करनी पड़ती हैं, अपने हालातों के कारण...! ज़िंदगी