गुणा- भाग और शेष

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गुणा - भाग और शेष लघु कथा ‘ कुमार। ’ ‘ ?’ ‘ ऐसे कब तक घुटते रहोगे? ’ ‘ जब तक समय का तकाज़ा रहेगा।’ ‘ जि़न्दगी की तन्हाइयों में यूँ अकेले रिस-रिसकर क्यों अपने जीवन की खुदकशी कर रहे हो?’ ‘ तुम शायद यह भूल रहे हो कि जो लोग मर जाया करते हैं, वे दोबारा फिर कभी नहीं मरा करते हैं। और मैं भी एक जीवित लाश हूं। मेरे लिये जब जीवन और मृत्यु का कोई अर्थ नहीं रहा है तो ऐसी दशा में, मैं कैसे अपनी आत्महत्या कर सकता हूं?’ ‘ जीवन बहुत बड़ा और मूल्यवान