Ek Masoom Ladki

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शाम के लगभग छः बज रहे थे। पतिदेव के ऑफिस से घर आने का वक्त हो रहा था । बस रोज़ दिनचर्या का हिस्सा सा होता है उस वक्त उनको फ़ोन करके पूँछने का , कि निकले या नहीं , कब तक घर पहुँच रहे । इसलिए आज भी बस काल लगाके बॉलकनी में चली गई , हालाँकि बॉलकनी में खड़े होकर बात करने का दिनचर्या से कोई लेना देना नहीं है क्यूँकि घर के ठीक बाहर से मेन सड़क जाती है , जहां सुबह - शाम लोगों के टहलने से और ऐसे ही दिन भर चहल क़दमी बनी रहती