कृपा-आकांक्षी

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बृजबाला को इधर नौकरी देने से पहले मुझे स्कूल-प्रबन्धक के कमरे में बुलाया गया था। ’’आइए, हेड मिस्ट्रेस महोदया।’’ स्कूल प्रबन्धक को मेरी समझ पर बहुत भरोसा था और वे प्रत्येक नियुक्ति मेरी संस्तुति पर ही किया करते थे-उनकी राय में पहली जमात के पाँच विद्यार्थियों से शुरू किए गए इस स्कूल को आठ वर्ष की अवधि में आठ वर्ष की अवधि में आठ जमातों के 361 विद्यार्थियों वाले स्कूल में बदल देना मेरे ही परिश्रम एवं उद्यम का परिणामी फल था-’’कुदन लाल की इस विधवा पत्नी का यह प्रार्थना-पत्र नन्द किशोर बनाकर लाए हैं.....’’ नन्द किशोर हमारे स्कूल के