पीछे न मुड़ना

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वो एकटक मुझे देख रही थी। उसके चेहरे पे मुस्कान थी। वो बेहद खूबसूरत भी थी। हम दोनो एक दूसरे से नजर मिलाए हुए थे। बस दिक्कत इतनी सी थी की मैं १४वे मंजिले में था और वो मेरी खिड़की के बाहर हवा में लटकी हुई थी। मेरे अंदर प्यार का नही भय का भावना जागृत हो गया था। मैं अपने बिस्तर से उतरने की कोशिश करने लगा। इतने में वो खिड़की के और पास आने लगी। मैं और खिसका, वो और पास आने लगी। मैं जितना खिसकता वो उतना पास आती। मैं ज़रा सा हिला, वो फिर भी पास