रामायण - अध्याय 2 - अयोध्याकांड - भाग 10

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(10) श्री राम-वाल्मीकि संवाद* देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए॥राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन॥3॥ भावार्थ:-सुंदर वन, तालाब और पर्वत देखते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी वाल्मीकिजी के आश्रम में आए। श्री रामचन्द्रजी ने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है॥3॥ * सरनि सरोज बिटप बन फूले। गुंजत मंजु मधुप रस भूले॥खग मृग बिपुल कोलाहल करहीं। बिरहित बैर मुदित मन चरहीं॥4॥ भावार्थ:-सरोवरों में कमल और वनों में वृक्ष फूल रहे हैं और मकरन्द रस में मस्त हुए भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। बहुत