(24) बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद* चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥4॥ भावार्थ:-डंका बजाकर बारात चली। छोटे-बड़े सभी समुदाय प्रसन्न हैं। (रास्ते के) गाँव के स्त्री-पुरुष श्री रामचन्द्रजी को देखकर नेत्रों का फल पाकर सुखी होते हैं॥4॥ दोहा : * बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥ भावार्थ:-बीच-बीच में सुंदर मुकाम करती हुई तथा मार्ग के लोगों को सुख देती हुई वह बारात पवित्र दिन में अयोध्यापुरी के समीप आ पहुँची॥343॥ चौपाई : *हने निसान पनव बर