(22) बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादिचौपाई : * कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥ भावार्थ:-(दूध, शर्बत, ठंडाई, जल आदि से) भरकर सोने के कलश तथा जिनका वर्णन नहीं हो सकता ऐसे अमृत के समान भाँति-भाँति के सब पकवानों से भरे हुए परात, थाल आदि अनेक प्रकार के सुंदर बर्तन,॥1॥ * फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥2॥ भावार्थ:-उत्तम फल तथा और भी अनेकों सुंदर वस्तुएँ राजा ने हर्षित होकर भेंट के लिए भेजीं। गहने,