ईमानदारी और शराफत पर ठहाके

  • 2.6k
  • 972

ईमानदारी और शराफत पर ठहाके एक ही शहर में रहने वाले आदर्श और अशोक ने साथ-साथ पढ़ाई की थी। संयोगवश अशोक अपने दबंग पिताजी की धन-संपत्ति और राजनीतिक रौब के चलते एक चर्चित नेता बन गया। वहीं आदर्श अपनी स्वच्छ छवि और निश्छल समाजसेवा से लोकप्रिय हो चला था। बावजूद इसके दोनों की दोस्ती में न कभी दरार नहीं आई, न ही दोनों ने किसी के उसूलों पर उँगुली उठाई। वक्त गुजरता गया। राजनीति और समाजसेवा जैसे चलती हैं, चलती रहीं। समय साक्षी है कि कल का किसी को पता नहीं होता। फिर भी हम जिंदगी और भविष्य के ताने-बाने