मुख्यधारा

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बहुत दिनों से सन्देश कहीं जा नहीं पाया था। वो बस अपने ही कार्यालय की मारामारी में उलझा सा रह गया था। सन्देश जैसा घुम्मकड़ प्रवृति का व्यक्ति एक कुर्सी से बंधकर रह जाये तो उसके भीतर की कुलबुलाहट का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वो कई दिनों से इस कोलाहल से दूर निकलने की जुगत कर रहा था लेकिन हर बार दफ्तर के कामों के फेहरिस्त उसके सामने आ कड़ी होती थी। आज अचानक ही उसे एक निमंत्रण मिला था ,एक संगोष्ठी थी। विषय था बाज़ारवाद ,मुख्यधारा और आम आदमी। पहले तो उसने सोचा क्या करूँगा वहां जाकर। वही भाषणबाज़ी , वही आलाप और