एक रूह की आत्मकथा - 3

(11)
  • 7.2k
  • 4.5k

मैं अंधविश्वासी नहीं थी फिर भी सिंदूर गिरने से मेरा मन किसी भावी आशंका से कांप उठा था ।मैं दौड़ती हुई अपने कमरे में आई। मेरे पति रौनक अभी तक सुख की नींद में सोए पड़े थे।मैंने उनके माथे पर बिखरे बालों को प्यार से उनके सिर के पीछे समेटा तो चौंक पड़ी।उनका माथा बर्फ़ की तरह ठंडा था।मेरे मुँह से जोर की चीख निकली और फिर जैसे मुझे काठ मार गया।मेरी चीख सुनकर सबसे पहले मेरी सास दौड़ती हुई आई। उनके पीछे घर के अन्य सदस्य थे।वे मुझे जमीन पर शून्य पड़ी देखकर सब कुछ समझ गए थे। फिर