उस शाम संतोष बुआ मुझे जब अपने चैबारे के छज्जे पर दिखाई न दीं, तो उनकी खबर लेने में ऊपर उनके पास पहुँच ली। अपने बिस्तर पर लेटी वह थरथर काँप रही थीं। शीत से ठंडे शरीर के साथ। रज़ाई और कम्बल ओढ़े रहने के बावजूद। ’’सुधीर,’’ छज्जे पर खड़ी होकर मैंने छोटे भाई को पुकारा। उससे बड़ा, सुशील चार से छह बजे तक कंप्यूटर सीखने जाता है। ’’क्या है ?’’ सुधीर हमारे आँगन में चला आया। ’’वालिया अंकल को बुला लाओ। बुआ को तेज़ सर्दी लग गई है....।’’ वलिया अंकल डाॅक्टर हैं और हमारे पड़ोस में उनका अपना क्लीनिक