बिटिया

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जब पहली बार शास्त्री उसे बिठाने आए थे। किसी के माध्यम से बात हुई थी। और एक तिलकधारी, धोती-कुर्ते वाला भारी भरकम पंडित उनके सामने खड़ा था, परिचय देते ही उन्होंने सीट से उठ कर उसके पांव छू लिए थे, जिसके बगल में गेहुआं वर्ण की अल्हड़-सी लड़की खड़ी थी, उसे उन्होंने बिटिया कहा था। लेकिन अब ज्योति कहकर बुलाते थे। वह पुराना संबोधन भूल गए थे, तो भी यह ख्याल तो बना ही रहता कि यह बिटिया दाखिल है। मगर इस खयाल के बावजूद एक दूसरा ख्याल भी तारी था, जिस कारण यह लड़की सपने में आती तो बिटिया नहीं रह जाती।