चरित्रहीन - (भाग-17)

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चरित्रहीन.......(भाग-17)विद्या के अकेलेपन को मैं समझती थी!वो हमारे और दोस्तों के घर इतनी बेबाकी से नहीं जा सकती थी, जितना वो फ्री हो कर हमारे घर आ सकती थी। कई बार ऐसे मौके भी आए कि वरूण और नीला बच्चों के साथ आए होते थे तो वो आ जाती। सब उसको रिस्पेक्ट देते थे। मुझे भी अजीब नहीं लगता था क्योंकि वो कभी नहीं कहती थी कि बस मुझे भी मेहमानों की तरह पूछो....वो अपने घर जैसा व्यवहार करती थी। चाहे फिर वो खाना बनाने में हेल्प हो या फिर कोई और घर का काम......जब से उसके भाई ने अपनी