मेल - अंतिम भाग

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उन दिनों वक़्त ही तेज़ी से भाग रहा था। या बच्चें ही जल्दी बड़े हो गए थे। ये मुझे बिल्कुल पता नहीं चला। शायद मैं खुद में ज्यादा ही व्यस्त थी। और इसका कारण भी था। क्योंकि पापा की डेथ हो चुकी थी। और उनके बुक स्टोर से लेकर घर तक सब कुछ मुझे ही संभालना था। इस बीच महेश नाम के किसी शख्स से मैं मिली भी थी। अपनी ज़िन्दगी में, मुझे ये याद भी नहीं था। मैंने खुद को और अपने बच्चों को संभालना पुरी तरह सीख लिया था। मुझे अपनी ज़िंदगी को इस नए रूप में ढालने