अपना घर

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वह सिर्फ दो दिन के लिए जबलपुर आयी थी, वहाँ के कन्या महाविद्यालय में बाह्म परीक्षक के रूप में। पर आज आठ दिन हो गये हैं, उसका मन ही नहीं कर रहा वापस घर जाने का! पाँच वर्ष पहले आयी थी बाऊजी के देहावसान पर। अम्मा के जाने के बाद बाऊजी ही एकमात्र मायके का आकर्षण थे। सुधा भाभी-राकेश भैया से दिन त्यौहार पर औपचारिक बातें हो जाती थीं। राकेश भैया का एक छोटा-मोटा कोचिंग संेटर है और सुधा भाभी एक निजी विद्यालय में पढ़कर भैया का हाथ बंटाती हैं। बकौल जतिन, “उनके रहने का स्तर निम्न मध्यम वर्ग का