दीपक शर्मा ‘धुआं ।’ क्या मेरे मुंह ने धुआं उगला था ? हे बजरंगबली ! मैं कांप गया । नहीं यह सच नहीं था । यह सच नहीं हो सकता था । मेरी भक्ति में खोट? वह जरूर सपना रहा होगा । मैंने अपनी बांह पर चुटकी काटी । नहीं, मेरे पास सिगरेट नहीं थी । सिगरेट मैं सपने में ही पी रहा था, सचमुच में नहीं । जय बजरंगबली । मैंने दोहराया । मेरे इष्ट ने मुझे उबार लिया । मुझे प्रलोभन से बचा लिया । 6 महीने पहले दशहरे के शुभ दिन में मैंने सिगरेट की एक नई