"अंगारे और सितारे"जब दुनिया अच्छी तरह बन गई तो सब काम सलीके से शुरू हो गए।घर घर रोटी बनने लगी।जहां घर नहीं थे, वहां भी रोटी बनती। पेड़ के नीचे, सड़क के किनारे,दो ईंट पत्थर जोड़ कर उनके बीच अंगारे दहकाये जाते,और रोटी बनती।चूल्हे मिट्टी के हों, लोहे के हों या पत्थर के, रोटी बनती।धुआं हो, लपटें हों,या आंच हो,रोटी बनती।लकड़ी, कोयला, गैस,तेल,या कुछ भी जलता और उस पर रोटी बनती।औरतें रोटी बनातीं। लड़कियां रोटी बनातीं, वृद्धाएं रोटी बनातीं।भूखे बच्चे या उतावले बूढ़े थाली लेकर सामने बैठ जाते और रोटी बनती।झोंपड़ी हो,घर हो,कोठी हो,बंगला हो,या महल हो,रोटी बनती।छोटा घर हो