वेश्या का भाई - भाग(११)

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मत रो मेरे भाई! अब से तू खुद को अकेला मत समझ,मैं हूँ ना ! तेरे दुःख बाँटने के लिए,मंगल बोला।। लेकिन मंगल भइया! कभी कभी जब माँ की हालत के बारें में सोचता हूँ तो रोना आ ही जाता है,जैसी बततर जिन्द़गी काटी है ना! मेरी माँ ने तो वो उनकी बदकिस्मती थी,हवेली में रहने वाली एक शरीफ़ घर की बेटी को तवायफ़ बनना पड़ा,इस समाज ने उन्हें ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया,रामजस बोला।। सही कहते हो भाई! क्या सभी औरतों की किस्मत में ऐसी ही जिन्द़गी लिखी होती है या फिर हम जिन औरतों को जानते