ग्यारह अमावस - 25

(1.3k)
  • 7.4k
  • 4.2k

(25)दीपांकर दास परेशान हो गया। वह उठकर कमरे के दरवाज़े तक गया। दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। पर दरवाज़ा बाहर से बंद था। उसने अपनी मुठ्ठियों से दरवाज़ा पीटना शुरू किया। वह चिल्ला रहा था,"शुबेंदु....शुबेंदु..... दरवाज़ा खोलो। मुझे यहाँ से निकालो।"वह बहुत देर तक दरवाज़े को पीटते हुए शुबेंदु को आवाज़ लगाता रहा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। थककर वह दरवाज़े के पास ही फर्श पर बैठ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे अचानक यह क्या हो जाता है। वह इस भयानक रूप में क्यों आ जाता है। अचानक ही उस पर एक बेहोशी सी छा