रसोईघर

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नए घर में शादी के बाद आज रचना का चौथा दिन था।अब तक तो सब ठीक ही था।रचना को मायके की ही तरह प्यार और दुलार यहाँ भी मिल रहा था आज रचना का रसोई पूजन थाजिससे रचना कुछ डरी हुई थी। हाथों में मेहंदी, बालो में गजरा लगाए महकती हुई रचना को जब उसकी दोनों जेठानियाँ रसोईघर की ओर ले जाने लगीं तो घबराहट के मारे रचना काँप उठी और एक पल को ठिठक गई । दोनों जेठानियाँ ज़ोर से हँसते हुए बोलीं अरे घबराने की ज़रूरत नहीं है बस घर के ही लोग होंगे। रचना भारी मन से