मैं ईश्वर हूँ - 4

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बिम्ब रात्रि में उसी जगह पर स्थिर है जहाँ उसे अपने आत्मीय जन रोते और परेशान होते हुए दिखे थे। बिम्ब रात्रि काल में ईश्वर के साथ हुए वार्तालाप को अपने अंतः-मन में सोचने लगता है। “वह तेजस्वियों का तेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय