उदास इंद्रधनुष - 3

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खा- पीकर जब तक हम लोग तो मैदान में गुड्डी (पतंग) उड़ाने पहुँचे तब तक मोहल्ले के कई बच्चे अपनी पतंगों को आसमान में लहरा रहे थे। जनवरी की हल्की गुनगुनी धूप ,देह को गरमी और साफ़ नीले आसमान में कलाबाज़ियाँ खाती रंग बिरंगी पतंगें आँखों को ठंडक पहुँचा रही थीं। अब तक आदित्य भी पहुँच गया था मैदान में और भैया के साथ मिलकर पतंग उड़ाने की तैयारी करने लगा था ।मुझे उन लोगों ने लटई पकड़ने का काम सौंपा और कभी-कभी पतंग को ढील देने का।देखते ही देखते है हमारी पतंग दूर आसमान से बातें करने लगी। मेरी