सलीब अपना-अपना

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सलीब अपना अपनापरीक्षाएँ ख़त्म कर घर में यूँही बेकार बैठना अच्छा नहीं लग रहा था मीता को । घर बैठे - बैठे ऊब रही थी कि माँ ने सुझाया कि क्यों नहीं वह पेंटिंग का एक क्रैश कोर्स जॉइन कर ले । मीता की सहेलियों ने भी कोई न कोई कोर्स ज्वाइन कर लिया था और मीता को एकसुविधा भी थी कि उसकी माँ जहाँ पढ़ाती थी उसी स्कूल में पेंटिंग के क्लासेस भी चलते थे।सो बिना देर किए उसने एडमिशन लिया औरजाना शुरू कर दिया । उस दिन जब माँ अपने स्कूल की सेक्रेटरी के घर जाने वाली थी तो मीता ने माँ से पूछा - आज क्या कोई ख़ास बात है ? माँने कहा - हाँ सेक्रेटरी मैडम की पोती की छठी है इसलिए पूरे स्कूल के स्टाफ़ अपने परिवार के साथ आमंत्रित हैं।पापा तो कलकत्ते से दो दिनों बाद आएंगे और प्रभास ने साथ जाने से मना कर दिया है।तुम्हें मेरे साथ चलने की इच्छा है तो चलो। मीता नेकहा - माँ प्रभास भैया से बोलो कि वो हमें गाड़ी से ड्रॉप कर दें और आते समय हम लोग कैब लेकर चले आएंगे।उसकी कोई ज़रूरत नहीं है मीता हमलोग ऑटो से ही चलते हैं।माँ की बात से मीता भी राज़ी हो गयी और दोनों निकल गईं साथ-साथ , शाम के 7 बजे तक पहुँचना था । राजेन्द्र नगर के 12 नंबर रोड में पहुँचते ही सड़कों के दोनों किनारों पर लगे फ़्लडलाइट्स होने की वजह से घर ढूंढने में ज़रा भी दिक़्क़तनहीं हुई गेट पर पहुंचकर वे दोनों ऑटो रिक्शा से उतरीं और अपने परिधानों पर पड़े सिलवटों को ठीक कर मुख्य द्वार की ओर बढ़ गईं ।बाहर से ही आलीशान भवन की भव्यता का पूरा एहसास हो रहा था। बड़ा सा बंगला और बाहर लॉन के किनारे ऊँचे- ऊँचे अशोक के पेड़,क़रीने से लगे सभी की पेड़ों को इतनी ख़ूबसूरती से काटा- छाँटा गया था कि लग रहा था जैसे कई अर्दली मेहमानों के स्वागत में बड़ेअदब से खड़े हैं ।रंग - बिरंगी बत्तियों से सजी दीवारें और बड़ी कुशलता से सजाये गए पेड़ , मोहित कर रहे थे ।भीतर घुसते ही सेक्रेटरी मैडम मिल गईं ।हमें देखते ही पूछा - अरे सर नहीं आए और प्रभास भी नहीं दिख रहा है।माँ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि नहीं काम में व्यस्तता के कारण वे लोग नहीं आ सके । तभी माँ के स्कूल की अन्य शिक्षिकाएँ भी आगई उन्हें देखते ही सेक्रेटरी मैडम ने कहा लो प्रभा , मीना भी आ गई चलिए आप सबको अपनी बहु से मिलवाती हूँ।गार्डन क्रॉस करते हुए मीता हर चीज़ का मुआयना करती जा रही थी,पूरा गार्डन टेराकोटा के ख़ूबसूरत गमलों , काली मिट्टी के छोटे- बड़ेहाथी , टेराकोटा लैंपपोस्ट और मोती के झालरों से सजे लंबे से कॉरिडोर का मोहक प्रकाश - संयोजन इतना भव्य लग रहा था कि आँखेंठहर नहीं पा रहीं थीं ।बरामदे से होकर सभी ड्रॉइंगरूम में पहुँचे वहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ लगी थी बच्चे भी भागा दौड़ी कर रहे थे तभीसेक्रेटरी मैडम आगे - आगे चलती हुई जमघट के बीच से बड़ी मुश्किल से जगह बनाते हुए बहु के कमरे तक पहुँच ही गए ।वहाँ हल्दी सी पीली , सुनहरी किरण लगी साड़ी में बेहद आकर्षक नैन नक़्श वाली नई नवेली सी , सद्यः प्रसूतागोद में नवजात को लिए सिमटी बैठी थी । कितनी प्यारी बहु है , कहते हुए माँ गहरी नींद में सोये हुए छौने को निहारा । घोर निद्रा में लीनबालक का सलोना रूप मोह रहा था । माँ ने साथ लाये लाल लिफ़ाफ़े को वहीं बच्चे के पास रख दिया ।तभी प्रभा ने कहा - चलिए दीदीबाहर चल कर बैठते हैं ।बाहर लॉन में बैठना बेहद सुहाना लग रहा था , लोगों ने खाना-पीना भी शुरू कर दिया था ।दीदी चलिए डिनर सर्व कर दिया गया है , आइए खाना खा लें , कह कर प्रभा आगे बढ़ गई ।चलते चलते मीता ने माँ से पूछा - माँ यहाँ घर के सबलोग आस -पास दिख रहे हैं पर सेक्रेटरी साहब का वो बेटा नहीं दिख रहा है , जिसका बच्चा है । माँ ने चारों तरफ़ देखा फिर धीरे से कहा — अभी मत पूछ मीता , बाद मैं बताती हूँ।खाना पीना खाने के बाद सबने विदा लिया ।घर पहुँचकर माँ जो कहानी सुनाई उसे सुनकर मीता को लगा जैसे शिराओं में लहू जमने लगा है उसने कसकर आँखों को मींच लिया...... माँ तीस साल पीछे लौट गई थीं वे कहती जा रहीं थीं—- करीब पच्चीस -तीस साल पहले की बात है जब आज की सेक्रेटरीसाहिबा की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी । उस समय भी बहुत ही शानदार ढंग से दावत दिया गया था। इनके श्वसुर शहर के जानेमानेएडवोकेट थे सास भी पढ़ी लिखी महिला थीं और ससुराल में इन्हें ख़ूब लाड़ प्यार मिला ।तब इनके गाँव -घर से लोग बहुरिया को देखनेआते थे और ख़ूब ख़ुश होते ।आज जिस स्कूल में हम लोग पढ़ा रहे हैं उस स्कूल की नींव इनके ससुर ने ही डाली थी उनको बड़ा शौक़ थाकि उनकी बहू उनके स्कूल की देख रेख करे।स्कूल उनकी देख - रेख में अच्छा चलने भी लगा ।दो साल बाद पता चला कि सेक्रेटरी साहिबा माँ बनने वाली हैं, घर में एक बार फिरजश्न सा माहौल हो गया और स्कूल में भी सारे स्टाफ़ ख़ुशी से निहाल हो गए ।सब कुछ अच्छा चल रहा था स्कूल को सेक्रेटरी साहिबाकी सास भी देख रेख करने लगी थीं ताकि बहू को कुछ आराम मिले।कुछ महीनों के बाद ही डॉक्टरी चेकअप से मालूम हुआ कि उनके गर्भ में एक नहीं दो बच्चे पल रहे हैं,अब तो और भी एक अतिरिक्तदेखभाल शुरू हो गई,तब सेक्रेटरी साहब की सास ससुर ने स्कूल की कमान संभाल ली और उनको पूरा आराम देने लगे । सातवें महीने मेंएक दिन अचानक ख़बर आयी कि सेक्रेटरी सहावा बाथरूम में फिसल गई हैं, कोई चोट तो नहीं आयी पर अस्पताल में भर्ती किया गयाहै।अस्पताल में डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन द्वारा डिलिवरी करने की बात बतायी।पूरे घर में अफ़रातफ़री मच गई सबलोग हॉस्पिटल पहुँचे कुछ घंटे बाद ख़बर आयी के सेक्रेटरी साहिबा को जुड़वाँ बेटा हुआ है।बेटे कीख़बर पाकर सबलोगों को ख़ूब ख़ुशी हुई । सब कुछ सब ठीक था पर नवजात शिशु की जाँच के लिए पीडियाट्रिक एक्सपर्ट आए औरउन्होंने जाँच किया जाँच करने के बाद उन्होंने सेक्रेटरी साहिबा की सास को बाहर बुलाया और बताया - माता जी दोनों बच्चे अच्छे हैं । पर आपको एक बात बतानी है कि पहला बच्चा तो बिलकुल स्वस्थ हैं पर दूसरे बच्चे मैं थोड़ी मानसिक परेशानी आ सकती है क्योंकिउसका रिस्पॉन्स नॉर्मल नहीं सुनते ही उन पर गाज गिर गया ।डॉक्टर साहब ने कहा कि कृपया अभी पेशेंट को ये बात ना बताएँ क्योंकि उनकी मानसिक चिंताएं बढ़ेगी और उनके स्वास्थ्य पर असरहोगा और बच्चों के भी ।मायूसी से भरी वे भीतर गई चेहरे पर ओढ़ी हुई मुस्कान लिए । बार बार उनकी नज़र दोनों बच्चों पर पड़ती तो डॉक्टर की बात याद करमन बहुत कचोटता ।यह बात भले ही सेक्रेटरी साहब तक नहीं पहुँची पर घर में बाक़ी सदस्यों को तो मालूम हो ही गयी , पर सब कोताक़ीद थी कि इस बात का ज़िक्र नहीं किया जाए। सभी बच्चों की देख रेख में व्यस्त थे और सेक्रेटरी साहिबा का भी पूरा ख्याल रखा जारहा था।पर भला माँ की नज़रों से बच्चों को दूर रखना संभव कहाँ हो पाता है , जल्द ही सेक्रेटरी साहिबा को उनके बच्चों का हाल मालूम हो गया , लव-कुश नाम रखा था उन्होंने अपने बच्चों का ।कुछ महीने बीत , लव तो आम बच्चों सा चहकता , हाथ-पाँव पटकता पर कुश शिथिल पड़ा रहता । कुश का हर तरह का इलाज किया गया कई शहरों के उम्दा डॉक्टरों की चिकित्सकीय सलाह ली गई , दिन - रात की मालिश , देसी-विदेशी इलाज का भी सहारा लिया गया पर कोई असर नहीं हुआ।पाँच साल की उम्र होने पर लव तो सामान्य विद्यालय जाने लगा पर कुश घर पर ही रह रहकर सीखता ।हालाँकि घर पर माँ बाप दादा दादी सब का बहुत प्यार मिलता पर दोनों बच्चों में अंतर तो आ ही गया था। सेक्रेटरी शायद वह बहुत परेशान रहते है कुश की मन: स्थिति को लेकर ।पर धीरे -धीरे सब सामान्य हो गया,लव पढ़ने के लिए विदेश चला गया है और पढ़ाई के दौरान ही उसकी एक लड़की से दोस्ती हो गई और जल्दी ही उसकी शादी हो गईऔर वहीं उसने अपनी गृहस्थी भी बसा ली।कुश की शादी की भी उम्र हो ही गई थी पर उससे शादी करने को कौन तैयार होता भला ?वैसे तो इतनी बातें मालूम नहीं होती लेकिन उनके घर काम करने वाली मालती ने बताया कि गाँव की एक ग़रीब लड़की के घर से कुशबाबू से ब्याह का रिश्ता आया है । लड़की का पिता बेहद ग़रीब है इसलिए उसने शादी करवाने का मन बना लिया है।इतनी देर मीता चुप रही पर अब उससे रहा नहीं गया तो उसने पूछा कि- माँ ,क्या लड़की से किसी ने पूछा कि वह शादी करना चाहती हैकि नहीं?मुझे नहीं लगता है मीता , भला लड़की से किसी ने उसका मंतव्य पूछा होगा ?घर में खाने - पहनने को नहीं , तो ऐसे में लड़की भी क्याबोली होगी , उसने सोचा होगा कि पिता का भार कम होगा और चुपचाप सिर झुकाए चली आयी होगी। तो माँ क्या गहना-कपड़ा ही सब कुछ होता है आख़िर शादी का मतलब क्या है ? मीता ने तुनक कर पूछा ।अभी तक तो सेक्रेटरी साहिबा का सौम्य रूप ही मीता ने देखा था पर इस चेहरे के पीछे मुखौटे की असलियत जान कर उसके मन में घृणाहो रही थी।पहले तो लड़की बहुत चुपचाप रहती थी पर धीरे धीरे वह पूरे घर के साथ कुश का भी ध्यान रखने लगी ।देखते ही देखते दो वर्ष हो गए, सेक्रेटरी साहिबा ने इस बीच उसका ग्रेजुएशन भी करवा दिया । पढ़ाई पूरा करने बाद सेक्रेटरी साहिबा नेउसकी काउन्सिलिंग करवायी और कृत्रिम गर्भाधान के लिए राज़ी किया ।पहले तो राज़ी ही नहीं हो रही थी बहु , भयभीत थी पर जबउसके पिता ने समझाया तब सहमति दी उसने ।कुश का ही स्पर्म कृत्रिम रूप से उसकी कोख में डाला गया और उसकी गोद हरी हुई ।देखा , कितना प्यारा बच्चा है सलोना सा , एकदम नार्मल ।सब कितने खुश हैं, बहु भी माँ बनकर पूरी औरत बनी , आख़िर पूर्णता तो इसी में है ना् - माँ बोली कैसी बातें करती हो माँ ? आप शिक्षिका हैं , आप भी ऐसी सोच रखेंगी तो कैसे चलेगा ? माँ औरत का माँ बनना अद्भुत है मानती हूँ पर बिना माँ बने भी औरत पूरी है, उसका अपना वजूद है ,अपना व्यक्तित्व, आप इसे नकार नहींसकतीं ।माँ आपने उस पीली किरनों से लिपटी पीली साड़ी में उस लड़की का चेहरा देखा ? मातृत्व से तृप्त तो था पर आँखों में गहरा सूनापन था , होंठों पर फ़ीकी सी मुस्कान थी । कितना दर्द समेट रखा था .... कभी पूछा होगा किसी ने , थाह ली होगी किसी ने कभी ? मीता का मनतड़प उठा । घुटनों के बीच सिर छुपा कर मीता सिसकने लगी । बेटी की तड़प से माँ भी पिघल गई , चुपचाप मीता के बालों में उँगलियाँफेरने लगीयाद आने लगी पियरी पहनी वो मासूम लड़की जिसकी गोद में एक सलोना शिशु था , सूखी मुस्कुराहटों का झुरमुट और ज़िंदगी कीअंतहीन सूनी पगडंडियाँ....——— अमृता सिन्हा 07/04/2021