प्रेमचन्द का समाज

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कृष्ण विहारी लाल पाण्डे लेख- प्रेमचन्द का समाजहिंदी कथा साहित्य के प्रतीक रचनाकार प्रेमचंद के अन्य प्रदेशों के साथ उनकी प्रासंगिकता का विशेष उल्लेख किया जाता है । प्रासंगिकता के 2 आयाम होते हैं -एक अपने समय में सार्थक होना और दूसरा इस समय का अतिक्रमण करके भविष्य की स्थितियों में भी संगत बने रहना। समय बोधक होते हुए भी समकालीनता केवल काल की अवधारणा नहीं है, वह अपने समय के मात्र भौतिक उपस्थिति नहीं है । समकालीनता अपने समय के साथ ऐसी वर्तमानता है, कि इसमें हम उस समय के प्रभावों और दबावों के साथ अंतः क्रिया और प्रतिक्रिया