रघु ने बाबू को साफ़ साफ़ कह दिया था कि चाहे मूंगफली के पैसे की उगाही धनीराम के यहां से आए या न आए, वो काकाजी के पास ज़रूर जाएगा। उसका दसवीं का इम्तहान था जिसके बस सात पेपर बाक़ी थे। यानी कुल ग्यारह दिन! बस, फ़िर वो मुंबई जा कर ही रहेगा। बाबू उसे पिछले तीन साल से टालते आ रहे हैं। उसने मां को भी कह छोड़ा था..."अबकी बार तू बाबू की भीड़ मत बोलियो अम्मा !" जबसे काकाजी के बड़े लड़के,उसके चचेरे भाई नवल दादा ने उसे पिछली होली पर ये उकसान भरा आश्वासन दे डाला था