वैसे तो अबतक के जीवनकाल में कई प्रियजनों से दुखद वियोग का सामना करना पड़ा है लेकिन असामयिक,आकस्मिक निधन अधिक पीड़ादायक होता है, वह भी तब जब हमें कोई प्रयत्न करने का मौका ही न प्राप्त हो।त्रिदिवसीय बेटी एवं 25 वर्षीय भाई के लिए कुछ भी न कर सके।पिता जी की तो हर सम्भव चिकित्सा व्यवस्था की गई।जब सात साल की थी,तब डेढ़ वर्षीय भाई की बीमारी से मृत्यु प्रथम दर्शन था काल का, लेकिन उस उम्र की याद में बस मां-पिता का विलाप स्मरण रह गया है, क्योंकि मेडिकल कॉलेज से लौटते समय उसे मिट्टी के सुपुर्द करते