बंगले की छत से पीछे कुछ दूरी पर ग़ज़ब की हरियाली दिखाई देती थी। उस दिन मेरी बड़ी बहनजी मिलने आईं तो मैं उन्हें बंगला दिखाते हुए छत पर भी ले गया। वो देखते ही ठिठक गईं। बोलीं- वाह, क्या नज़ारा है! दिल्ली में तो ऐसी हरियाली कलेंडर की तस्वीर में भी न दिखे। ये सुनकर तो वो अचंभे से देखती ही रह गईं कि सुबह लंच के साथ सलाद में जो ताज़ा मूली खाई थी वो इसी हरे भरे खेत की है। मैंने उन्हें बताया कि आसपास के ये खेत जिस छोटे से गांव के हैं वहीं से अपना