मे और महाराज - 4 (सुहागरात)

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जगह : आठवें राजकुमार का महल।उसने घूंघट उठाया। " अभी दो महीने ही हुए है मुझे यहां आए हुए, और अब मे शादीशुदा हूं। ये कैसी किस्मत है मेरी। अब इस शादी को तो मे बदल नहीं सकती। पर सुहागरात तो मे अपनी मर्जी से मनाऊंगी। में भी देखती हूं कौन आता है मुझे छूने। मौली जाओ जल्दी से एक ठंडे पानी से भरा हुआ बर्तन एक पतली सी रस्सी जो किसी की नजर मे ना आए ऐसी और एक लकडे का डंडा इतना बड़ा लेकर आओ। जाओ।" उसने हाथो से इशारा कर मौली को दिखाया कि उसे कितने आकार