"दुनिया पूरी" मेरी पत्नी का देहांत हुए पांच वर्ष बीत गए थे। ऐसे दुःख कम तो कभी नहीं होते, पर मन पर विवशता व उदासीनता की एक परत सी जम गई थी। इससे दुःख हल्का लगने लगा था।जीवन और परिवार की लगभग सभी जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी थीं। नौकरी से सेवानिवृत्ति, बच्चों की नौकरियां और विवाह भी।ज़िंदगी एक मोड़ पर आकर रुक गई थी।दोबारा घर बसाना मुझे बचकाना ख़्याल लगता था। चुकी उमंगों के बीज भला किसी उठती उमंग में क्यों बोए जाएं? और अगर सामने भी चुकी उमंग ही हो तो दो ठूंठ पास आकर भी क्या करें।मुझे याद