बात बस इतनी सी थी - 30

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बात बस इतनी सी थी 30. तेरह दिन तक मैं उसकी जिंदगी के राजमहल की एक-एक खिड़की पर झाँकता हुआ भटकता फिरता रहा, लेकिन मुझे ऐसा कहीं कोई सुराग या ऐसा कोई रास्ता नहीं मिला, जहाँ से मैं उसकी जिंदगी के अंधेरे कोने का दर्शन कर सकूँ या जहाँ खड़ा होकर मैं उस नाम को सुन सकूँ, जो उसके दिल में बजने वाले तरानों में गूँजता है । चौदहवें दिन शाम को ऑफिस से लौटने के बाद मधुर ने मेरी जिज्ञासा को समझकर या मुझे अपना दोस्त मानकर खुद ही मेरे लिए अपनी उस जिंदगी के अंधेरे कोने की तरफ