लाकेट

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लाकेट सामने पड़ी किताबों के ढेर में आँखे गड़ाए ,अपने गले के लाकेट को उँगलियो से नचाती सी ना जाने कब से खोयी थी कि अचानक सामने प्रिन्सिपल महोदया को सामने देखकर वह अचकचा कर उठी ।उसने देखा वो मुस्कुरा रही थी ,उसकी जान में जान आयी ।नमस्कार मैडम ! प्रिन्सिपल वर्मा मुस्कुरायी ,” कोई चिंता है क्या जो फिर लाकेट से खेला जा रहा है ? नही नही मैडम बस ऐसे ही ,आदत सी हो गयी है ।माधुरी हंस पड़ी ।वैसे सच ही तो था जब भी वो गहन विचारों में खोती तो लाकेट पर हाथ