मास्टर जी की धोती

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माँ रोज़ सुबह सवेरे ही रतन को नहला-धुला कर तैयार करके बिठा देती। एक स्टील की डिबिया में चूरमा भरकर और साथ में घी में डूबी दो रोटी भी बाँधकर बस्ते में रख देती। साथ ही रतन के गले में बस्ता लटका कर स्कूल के लिए चलता कर देतीं। तीज-त्योहार के अलावा कभी-कभार माँ जब ज़्यादा प्यार दिखातीं तो छींकें पर लटके कटोर-दान में से इक्कनी निकाल कर रतन के हाथ में रख देती। कहती “ बेटा, भूखे पेट मत रहना , बाग से अमरूद लेकर खा लेना”। गाँव से ही, रतन के दो और साथी उसी की कक्षा