पंखेवाला (लघुकथा)

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अप्रैल का महीना था चिलचिलाती धूप निकली थी बाहर गर्म हवाएं चल रही थी कही-कही कोई दूर यात्री छाता लेकर आते-जाते दिखाई दे रहे थे,तो कही वृक्षों की छाया में बैठे हुए राहगीर दिखाई दे जाते थेइंसान तो इंसान इस गर्मी से जानवर और पंछियां भी परेशान दिखाई दे रहे थे, चुकी मेरा घर सड़क के किनारे है,और मैं अपनी बरामदा में कुर्सी पर बैठकर बाहर का दृश्य देख रहा था मुझमे दो आवेग हैं, पहला मैं बहुत ज्यादा चाय पीता हूँ, और दूसरा मैं देर तक सोने वाला आदमी हूँ, इसलिए चाय पीने का मन किया तो वही बैठा