राम रचि राखा - 6 - 2

  • 6k
  • 1.6k

राम रचि राखा (2) उस दिन जब मुन्नर दिशा फराकत से लौटे, भैया कुएँ पर नहा रहे थे। जल्दी जाना था। एक रिश्तेदारी में किसी का देहांत हो चुका था। सोच रहे थे जल्दी निकल लूँ। बीस कोस साईकिल चलाकर जाना है। दोपहर होने से पहले पहुँच जाऊँ। आजकल दोपहर में चल पाना मुश्किल हो रहा था। "मैं जा रहा हूँ नेवादा…हीरा से बात कर ली है…चले जाना थ्रेसर पर। दोपहर से पहले वे हमारा गेहूँ लगा देंगे।" भैया देह पोंछते हुए मुन्नर से कह रहे थे। मुन्नर, भैया के किसी भी बात का जवाब नहीं देते हैं। न हाँ