1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की - 3

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1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की प्रियंवद (3) ‘‘मुझे सुनाओगे‘‘ ? कंबल वाले की आवाज में वही पहले वाली गिडगिड़ाहट लौट आयी थी, जैसी खून के बारे मे पूछते समय थी। उसने एक बिस्किट उठा कर प्लेट उसकी तरफ सरका दी। चश्मे वाले ने प्लेट से एक बिस्किट उठा लिया। ‘‘वास्तव में वे पंक्तियाँ नहीं थीं। कुछ सू़त्र थे जिन्हें वह कविता में बदलना चाहते थे और यही नहीं हो पा रहा था। वह यहीं पर गलती कर रहे थे। कविता उनके अंदर खुद जन्म नहीं ले रही थी। वह उसे बना रहे थे, जैसे रसायन मिला