डोर (धर्म और कर्म की)...

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वो आज खुद को आईने के सामने बेठ के निहारे जा रही थी।आज उसकी चेहरे की चमक एसी थी की उसके आगे चाँद की चांदनी भी फीकी पड़ जाये। आज वो लाल जोड़े मे दुल्हनो की तरह सजी थी,और सजना मुनासिफ भी था आज उसकी शादी जो थी। आज उसकी जिन्दगी का वो दिन था जिस दिन के सपने अधिकतर लड़कियाँ अपनी किशोरावस्था मे ही देखना शुरु कर देती है। हालांकी उसने अपनी किशोरावस्था मे सिर्फ अपनी शादी का ही सपना नही देखा था, अपितु उसने कईयों ख्वाब संजोये थे अपने जीवन के लिये। उन्ही मे से एक सपना वो