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अपनी गाड़ी वर्कशाप में देने के बाद, मैं चौराहे की ओर बस स्टैंड की तरफ निकल गया। शायद इस गरज से कि बस या टैक्सी कुछ भी मिल जाये तो घर चला जाय। इस चिलचिलाती धूप में पैदल जाने से तो बेहतर ही होगा। किस्मत अच्छी थी सामने ही एक घर की तरफ जाने वाली बस खड़ी दिख गई। मैं बेझिझक उसमें चढ़ गया। बस बिल्कुल खाली थी। शायद दो या चार सवारियां| मैं आगे से तीसरी सीट पर बाईं तरफ बैठ गया। चश्मे के लेन्स पर माथे का पसीना जम आया था सो उसे उतारकर रुमाल से साफ