लिखी हुई इबारत -2

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मिठाई रात को सोने से पहले परेश ने घर के दरवाजों का निरीक्षण किया। आश्वस्त होकर अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ा ही था कि तभी सदा के नास्तिक बाबूजी को उसने चुपके से पूजाघर से निकलते देखा। "बाबूजी, इतनी रात को ... ?" उसकी उत्सुकता जाग गई,और उसका पुलिसिया मन शंकित हो उठा। वह चुपके से उनके पीछे चल पड़ा। वे दबे पाँव अपने कमरे में चले गए, फिर उन्होंने अपना छिपाया हुआ हाथ माँ के आगे कर दिया " लो तुम्हारे लिये लड्डू लाया हूँ, खा लो। " " ये कहाँ से लाए आप ?" " पूजा घर से ।" उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा। "